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कालसर्प पूजा

By on February 7th, 2023

Last modified on May 4th, 2024 at 4:39 pm

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This article was written by rvaishnav01

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कालसर्प पूजा

कालसर्प योग क्या है?
कालसर्प योग क्या है? और इस योग को कालसर्प योग क्यों कहा जाता है, शास्त्रों का अध्ययन करने पर हमने पाया राहू के अधिदेवता काल अर्थात यमराज है और प्रत्यधि देवता सर्प है, और जब कुंडली में बाकी के ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते तो इस संयोग को ही कालसर्प योग कहते है।

वास्तव में प्राणी के जन्म लेते है उसकी कुंडली में ग्रहो का एक अद्भुत संयोग विद्धमान हो जाता है जो समय के अनुसार चलता जाता है, ऐसे ही ग्रहो की गति बदलते बदलते एक ऐसे क्रम में आ जाती है जिसमे सभी ग्रहों की स्थिति राहु और केतु के मध्य आ जाती है, इसमें राहु की तरफ सर्प का मुख होता है और केतु की तरफ सर्प की पूँछ होती है ऐसा माना जाता है, इस संयोग के कारण ही व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग आ जाता है, वैसे काल सर्प का जो अर्थ ज्योतिष ने बताया है वो है ‘समय’ का सर्प के सामान वक्र होना, जिसकी कुण्डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ माना गया है।

राहु और केतु ग्रह होते हुए भी ग्रह नहीं है, ऋग्वेद के अनुसार राहु केतु ग्रह नहीं हैं बल्कि असुर हैं, राहु केतु वास्तव में सर और धड़ का अलग अलग अस्तित्व है, जो की स्वर्भानु दैत्य के है, ब्रह्मा जी ने स्वरभानु को वरदान दिया जिससे उसे ग्रह मंडल में स्थान प्राप्त हुआ। स्वरभानु के राहु और केतु बनने की कथा सागर मंथन की कथा का ही एक भाग है।

कालसर्प योग कैसे बनता है ?
मान लो यदि कुंडली के पहले घर में राहू स्थित है और सातवे घर में केतु तो बाकी के सभी सात गृह पहले से सातवे अथवा सातवे से पहले घर के बीच होने चाहिए! यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है की सभी ग्रहों की डिग्री राहू और केतु की डिग्री के बीच स्थित होनी चाहिए, यदि कोई गृह की डिग्री राहू और केतु की डिग्री से बाहर आती है तो पूर्ण कालसर्प योग स्थापित नहीं होगा, इस स्थिति को आंशिक कालसर्प कहेंगे ! कुंडली में बनने वाला कालसर्प कितना दोष पूर्ण है यह राहू और केतु की अशुभता पर निर्भर करेगा !

क्यों है राहु केतु कष्टकारी ग्रह
सामन्यतया ग्रह घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हैं वहीं राहु केतु घड़ी की दिशा में भ्रमण करते हैं। राहु केतु में एक अन्य विशेषता यह है कि दोनों एक दूसरे से सातवें घर में स्थित रहते हैं. दोनों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है, जैसा की हम जानते है की राहु और केतु स्वर्भानु दैत्य के अंश से बने है और दैत्य सदैव प्राणियों के लिए कष्टकारी ही रहे है तो राहु और केतु कैसे शुभ हो सकते है।

कालसर्प दोष का निवारण
हमारा वैदिक ज्योतिष शास्त्र ईश्वर की देन है, जो कुछ आपके प्रारब्ध में लिखा है उसे आप जप तप पूजा इत्यादि के द्वारा टाल भले ही न सके लेकिन उसका प्रभाव नगण्य करने तक की क्षमता रखता है, कालसर्प दोष है तो इसका निवारण भी है, भगवन भोलेनाथ के द्वार से कोई निराश नहीं जाता, जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हो वह श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।

कालसर्प पूजा क्या है ?
वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब अन्य ग्रह क्रमसः इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब कालसर्प योग बनता है. कालसर्प योग (Kalsarp Yoga) में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है, उज्जैन विश्वभर में तिलभर ज्यादा होने की विशेष उपलब्धि और ख्याति प्राप्त है, और साथ ही यह महाकाल की नगरी है इसलिए यहाँ पर सच्चे मन से की गयी पूजा विशेष फलदायी होने के साथ साथ करने वाले और कराने वाले पर भगवान शिव के परिवार की कृपा और अन्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है, ऐसा ग्रंथों में उल्लेख है।

कालसर्प पूजा किसको करवाबी चाहिए
जिन प्राणियों की कुंडली में ७ ग्रहो यथा सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि कुछ इस प्रकार से जमे हो की उनकी स्थिति राहू और केतु के बीच आ जाती है तो उस मनुस्य कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण होता है, और ऐसे मनुष्य को कालसर्प पूजा करवानी चाहिए।

कालसर्प पूजा क्यों करवानी चाहिए ?
जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता न मिल रही हो, मन में उथल – पुथल रहती हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प योग हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्युकी कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में कैसा कालसर्प है ये विशुध्द पंडित जी बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये ज्योतिषाचार्य पंडित परमेश्वर शास्त्री जी से और

कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प योग का निदान एवं निराकरण कराये।

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