पित्र दोष पूजा

पितृदोष पूजा करने से सभी दोषो का निवारण हो जाता है.अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विधि से अंतिम संस्कार न किया जाए तो पितृदोष होता है, या फिर किसी की अकाल मृत्यु हो जाए तो व्यक्ति के परिवार को कई पीढ़ियों को तक पितृदोष के परिणाम झेलने पड़ते है| इससे मुक्ति के लिए पितृदोष पूजा की जाती है|

पितृ दोष क्यों, कैसे तथा कब होता है

मनुष्य अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है। लेकिन कुछ कष्ट एवं अभाव ऐसे होते हैं जिन्हें सहन करना असंभव हो जाता है। ज्योतिषी, वास्तुशास्त्री, तांत्रिक, मांत्रिक जो-जो कारण बतलाते हैं, उन्हें निर्मूल करने के लिए जो प्रयास किए जाते हैं, उनका लाभ कभी नहीं, कभी कुछ तथा कभी पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। इन उपायों में एक है पितृ शांति। पितृ दोष क्यों, कैसे तथा कब होता है आइए जानते हैं…

-पितरों का विधिवत् संस्कार, श्राद्ध न होना।

-पितरों की विस्मृति या अपमान।

-धर्म विरुद्ध आचरण।

-वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि कटवाना।

-नाग की हत्या करना, कराना या उसकी मृत्यु का कारण बनना।

-गौहत्या या गौ का अपमान करना।

-नदी, कूप, तड़ाग या पवित्र स्थान पर मल-मूत्र विसर्जन।

-कुल देवता, देवी, इत्यादि की विस्मृति या अपमान।

-पवि‍त्र स्थल पर गलत कार्य करना।

-पूर्णिमा, अमावस्या या पवित्र तिथि को संभोग करना।

-पूज्य स्त्री के साथ संबंध बनाना।

-निचले कुल में विवाह संबंध करना।

-पराई स्त्रियों से संबंध बनाना।

-गर्भपात करना या किसी जीव की हत्या करना।

– कुल की स्त्रियों का अमर्यादित होना।

-पूज्य व्यक्तियों का अपमान करना इत्यादि कई कारण हैं।

पितृ दोष से हानि-

-संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना।

-नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो।

-घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना।

– घर के युवक-यु‍वतियों का विवाह न होना या विवाह में विलंब होना।

-अपनों के द्वारा धोखा दिया जाना।

-दुर्घटनादि होना, उनकी पुनरावृ‍त्ति होना।

-मांगलिक कार्यों में विघ्न होना।

-परिवार के सदस्यों में किसी को प्रेत-बाधा होना इ‍त्यादि।

पितृ दोष निवारण के कुछ सरल उपाय 

* श्राद्ध पक्ष में तर्पण, श्राद्ध इत्यादि करें।

* पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के निमित्त दान इत्यादि करें।
* घर में भगवत गीता पाठ विशेषकर 11वें अध्याय का पाठ नित्य करें।

* पीपल की पूजा, उसमें मीठा जल तथा तेल का दीपक नित्य लगाएं। परिक्रमा करें।

* हनुमान बाहुक का पाठ, रुद्राभिषेक, देवी पाठ नित्य करें।
* श्रीमद् भागवत के मूल पाठ घर में श्राद्धपक्ष में या सुविधानुसार करवाएं|
* गाय को हरा चारा, पक्षियों को सप्त धान्य, कुत्तों को रोटी, चींटियों को चारा नित्य डालें।

* ब्राह्मण-कन्या भोज करवाते रहें।

×